कृष्ण सखा मिल गये ग्वालन संघ, ईरत-फिरत घर देख लियो नृत्य पर दर्शक मंत्रमुग्ध
भीलवाड़ा। (पंकज पोरवाल) रमा कत्थक संस्थान भीलवाडा एवं आरसीएम समूह, एलएनजे समूह, एसबीआई, एसडी ट्यूर एण्ड ट्रावेल्स, ओस्तवाल समूह के सहयोग से दो दिवसीय नृत्याचार्य स्व. पं. राजकुमार जवड़ा स्मृति ’’भीलवाड़ा कत्थक समारोह 2023’’ के दो दिवसीय समारोह का आयोजन महाराणा प्रताप सभागार में मुख्य अतिथि विदुषी डॉ. शशि सांखला (नृत्य गुरू), डॉ. रीमा गोयल (नृत्य गुरू राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर), आरसीएम के सीएमडी तिलोक चंद छाबड़ा, एलएनजे ग्रुप के ओएसडी रजनीश वर्मा, ओस्तवाल ग्रुप से नीतु ओस्तवाल, पूर्व यूआईटी अध्यक्ष एलएन डाड, कलाविद मंजू मिश्रा, महन्त रामदास, गोपाल आचार्य, एमबी ब्यास ने नृत्याचार्य स्व. पं. राजकुमार जवड़ा के चित्र पर पुष्पाजंलि अर्पित शुरूआत की। संस्थान के अध्यक्ष कैलाश पालिया ने बताया कि दूसरे दिन स्थानीय जयपुर व दिल्ली के अन्तर्राष्ट्रीय कलाकारों की प्रस्तुतियों ने दर्शकांे को 2.30 घण्टे तक अपलक बांधे रखा। सचिव रमा पचिसिया ने बताया कि भीलवाड़ा की युवा कलाकार मनस्वी पचीसिया ने जयपुर घराने के विशुद्ध रूप को नृत्य गुरू चेतन कुमार जवड़ा के निदेशन में प्रस्तुत किया, मनस्वी ने अपनी प्रस्तुति का प्रारंभ शिव प्रस्तुति, तालरूपक मंे प्रस्तुत किया। इसके पश्चात् ताल, धमार में क्लिष्ट लहकारियांे के साथ-साथ थाट, आमद और चक्रधार परन तोड़े, टुकड़े, तिहाईयां को प्रवाह देखते ही बनता था। तीन ताल, द्रुतलय में फरमाईशी चक्रधार परमेल पर पारंपारिक बंदिशांे मंे जयपुर घराने का ओज देखते ही बनता था, अंत में कृष्ण कवित ’’कृष्ण सखा मिल गये ग्वालन संघ, फिरत-फिरत घर देख लियो’’ प्रस्तुत किया। इसी तरह दूसरी प्रस्तुति में जयपुर कत्थक घराने के जवड़ा बन्धु (चेतन व भवदीप जवड़ा) ने अपनी प्रस्तुति का प्रारंभ जयपुर घराने की प्रसिद्ध रचना ’’रंगिला शंभू गौरा रे पधारो प्यारा पावणा’’ से की, इसके पश्चात् राग बंसत व ताल बसंत मंे नौ मात्रा में जयपुर कत्थक घराने की बंदिशो में शुरूआत चाले से की। उसके बाद शुद्ध पारंपरिक कत्थक नृत्य में थाट, आमद, उठान, परने कुछ चक्कर की बंदिशे और तिहाईयां आदि की प्रस्तुति दी। कार्यक्रम की तीसरी प्रस्तुति में दिल्ली से पधारे युवा कत्थक नर्तक मुकेश प्रवीण गंगानी ने जयपुर घराने के कत्थक में गणेश प्रस्तुती ताल, आडा चोताल से की, जिसकी रचनाकार डॉ. माधुरी डूंगरे है। तत्पश्चात् पारंपरिक तकनीकी नृत्य में थाट, उठान, चलन, तोड़े, टुकड़े, परन, तिहाईयों की प्रस्तुती से दर्शकांे को अभिभूत कर दिया तथा अंत में कृष्ण भजन कहरवा ताल में प्रस्तुत किया। अंतिम प्रस्तुती जयपुर से पधारे नृत्य गुरू श्री जयराज जवड़ा की रही। नृत्य का शुभारंभ ठुमरी ’’ऐसो निठुर भऐं श्याम’’ से की, इसके पश्चात् शुद्ध पारंपरिक कत्थक व अंत मंे लोकगीत ’’म्हारा साजनियां रे साजनियां’’ पर अंगभाव व भावांे का सुन्दर संयोजन देखते ही बनता था। कार्यक्रम का संचालन जयपुर के आर.डी. अग्रवाल ने किया। तबला व पडन्त चेतन कुमार जवड़ा, पखावज पर भवदीप जवड़ा, गायन एवं हारमोनियम पर सावर मल कत्थक, सितार पर किशन कत्थक, तबले पर मोहित कत्थक ने संगत की। अंत में संस्थान के अध्यक्ष कैलाश पालिया ने सभी का आभार व्यक्त किया। मनस्वी पचिसिया एवं हर्षिता पुरोहित को नृत्यदीप्ति सम्मान मनस्वी पचिसिया व हर्षिता पुरोहित को कत्थक के क्षैत्र में अतिउत्तम प्रदर्शन व समर्पण के लिये नृत्याचार्य स्व. पं. राजकुमार जवड़ा नृत्यदीप्ति सम्मान प्रदान किया गया। गुरू डॉ. शशि सांखला, गुरू डॉ. रीमा गोयल, श्रीमती निर्मला देवी जवड़ा व अतिथियों ने शॉल, प्रशस्ति पत्र व 2100 रूपयंे की राशि प्रदान कर सम्मानित किया। 85 नृत्यांगनांे को किया पुरस्कृत 85 नृत्यांगनांे को पुरस्कृत करने के साथ-साथ 10 विशेष सम्मान - श्रीमती सुमन बुलिया, अभिलाषा व्यास, आहाना जांगिड़, मिशिका छाबड़ा, स्प्रिहा भदादा, वंशिका शर्मा, आंखी सूरिया, ईवा अग्रवाल, डॉ. अनिता गुप्ता, चेतना सिंगोदिया को भी प्रदान किये गये।
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