भीलवाड़ा। मूलचन्द पेसवानी जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश नवहाल व सुप्रसिद्ध पुरात्तवेत्ता डॉ. जीवनसिंह खरकवाल, डॉ. तमेघ पंवार ने मंगरोप पुलिस स्टेशन पर पुलिस अधिकारीयों को बनास नदी के समीप बसने वाली लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन धरोहर के अवशेष व मिट्टी के बरतनों के टुकडे जमा कराएं। जलधारा विकास संस्थान के अध्यक्ष महेश चन्द्र नवहाल ने बताया कि डॉ. जीवन सिंह खरकवाल, निदेशक, साहित्य संस्थान, जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्या पीठ विश्वविद्यालय के नेतृत्व में राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर के डॉ. तमेघ पंवार व तीन शोध विद्यार्थियों के साथ मंगरोप बनास नदी के समीप लगभग 5000 वर्ष से भी अधिक प्राचीन जनबसाव के अवशेषों का अध्यनन किया। इससे यह बात उभर कर आई कि यह लगभग 8 -10 हेक्टर के क्षेत्र में यह बस्ती थी। बनास के पास होने से जल उपलब्धता सुगम थी। यहां के निवासी मिट्टी के विशेष बरतन बनाने में निपुण थे। इनका अन्य जनबसाव की कॉलोनी से सम्पर्क रहा। यहां यह स्थान तीन बार बस कर उजाड हुआ। जिसकी अवथि टीम को यहाँ मिले साक्ष्य अनुसार लगभग 5000 वर्ष, लगभग 2000 वर्ष व लगभग 1100 - 1200 वर्ष स्पष्ट दृष्टिगोचर होती है। यहाँ मिले साक्ष्यों को स्थानीय मंगरोप थाने में पुलिस प्रशासन को स्थल की पूरी जानकारी देकर सौंपे गये। पुलिस अधिकारीयों को इसके महत्व व धरोहर के पुरातात्विक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि से भी अवगत कराया ताकि वे इसके वे इसके संरक्षण में सहभागी हो सके। यह भीलवाड़ा जिले की ऐसी धरोहर है जिसके अध्यनन व शोध की महती आवश्यकता है। जिसके अनुसार यह साबित होता है कि यह प्राचीनतम मानवबसाव रहा है, जिसके संरक्षण की बहुत आवश्यकता है। इस स्थल को सबसे पहले रजिस्टर 1957 में भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण के अधिकारी के एन पुरी ने की थी। सुप्रसिद्ध पुरात्तवेत्ता ओमप्रकाश कुकी ने भी वर्ष 2010 में पुनः इसे विजिट किया था।
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